सपने / दीनदयाल शर्मा गाँव की गलियाँ और घरों की छतों पर खड़े खिड़की- झरोखों से झांकते और दीवारों पर बैठे रंग - बिरंगे, फटे - पुराने कपड़े पहने ये भोले - भाले बच्चे जो यात्रिओं की आँखों में ढूढ़ते हैं खोया हुआ प्यार अपने नन्हे - नन्हे हाथों को इधर - उधर हिलाकर. पर प्रत्युत्तर में उन्हें मिलता है केवल धुंएँ का गुब्बार जो ले जाता है उनके मखमली सपने और दे जाता है घृणा के बीज.
१. बसन्त / दीनदयाल शर्मा
ReplyDeleteखेतों में ओढ़े
पीला ओढ़ना
सरसों खुशियाँ मनाये
मनमोहक चले
सहज सुहानी बयार
जब आये बसन्त
मेरे गांव
बसन्त
तू बस जा रे
बसन्त
तू बस जा
मेरे गांव.
मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा
२. सर्दी / दीनदयाल शर्मा
उन्हें
सर्दी कभी नहीं लगती
क्योंकि
उनका स्वभाव ही
बहुत गर्म है.
मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा
३. मेरा देश / दीनदयाल शर्मा
कागज के खेतों में
आंकड़ों की फसलें देख
मन मयूर नाच रहा है
कि देखो -
मेरा देश
कितना आगे जा रहा है.
मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा
४ . शूगर / दीनदयाल
एक डॉक्टर
मरीज से बोला -
यदि शूगर को
रखना है कंट्रोल
तो मीठा भी मत बोल.
मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा
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ReplyDeleteसपने / दीनदयाल शर्मा
गाँव की गलियाँ
और घरों की
छतों पर खड़े
खिड़की- झरोखों से
झांकते
और दीवारों पर बैठे
रंग - बिरंगे,
फटे - पुराने कपड़े पहने
ये भोले - भाले बच्चे
जो
यात्रिओं की आँखों में
ढूढ़ते हैं
खोया हुआ प्यार
अपने नन्हे - नन्हे
हाथों को
इधर - उधर
हिलाकर.
पर
प्रत्युत्तर में
उन्हें मिलता है
केवल
धुंएँ का गुब्बार
जो ले जाता है
उनके मखमली सपने
और
दे जाता है
घृणा के बीज.
अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा