प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Saturday, December 29, 2007

बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा, 
आधुनिक राजस्थानी के चितेरे कवि 
श्री चंद्रसिंह बिरकाळी के साथ।
2 September, 1992

2 comments:

  1. १. बसन्त / दीनदयाल शर्मा

    खेतों में ओढ़े
    पीला ओढ़ना
    सरसों खुशियाँ मनाये
    मनमोहक चले
    सहज सुहानी बयार
    जब आये बसन्त
    मेरे गांव

    बसन्त
    तू बस जा रे
    बसन्त
    तू बस जा
    मेरे गांव.
    मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा

    २. सर्दी / दीनदयाल शर्मा

    उन्हें
    सर्दी कभी नहीं लगती
    क्योंकि
    उनका स्वभाव ही
    बहुत गर्म है.
    मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा

    ३. मेरा देश / दीनदयाल शर्मा

    कागज के खेतों में
    आंकड़ों की फसलें देख
    मन मयूर नाच रहा है
    कि देखो -
    मेरा देश
    कितना आगे जा रहा है.
    मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा

    ४ . शूगर / दीनदयाल

    एक डॉक्टर
    मरीज से बोला -
    यदि शूगर को
    रखना है कंट्रोल
    तो मीठा भी मत बोल.
    मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा

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  2. अनुदित रचनाएँ

    सपने / दीनदयाल शर्मा
    गाँव की गलियाँ
    और घरों की
    छतों पर खड़े
    खिड़की- झरोखों से
    झांकते
    और दीवारों पर बैठे
    रंग - बिरंगे,
    फटे - पुराने कपड़े पहने
    ये भोले - भाले बच्चे
    जो
    यात्रिओं की आँखों में
    ढूढ़ते हैं
    खोया हुआ प्यार
    अपने नन्हे - नन्हे
    हाथों को
    इधर - उधर
    हिलाकर.
    पर
    प्रत्युत्तर में
    उन्हें मिलता है
    केवल
    धुंएँ का गुब्बार
    जो ले जाता है
    उनके मखमली सपने
    और
    दे जाता है
    घृणा के बीज.

    अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा

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