प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Tuesday, May 18, 2010

बाल पहेलियाँ भाग 1




1.




गोल - गोल अगनी का गोला,


कहलाता जो तारा,


उसके दिखने से होता है,


हर घर में उजियारा.






2.


दिखने में छोटी सी होती


गज़ब भरा है ज्ञान,


पढ़ कर इसको बन सकते हम


बहुत बड़े विद्वान






3.


टी. वी. से पहले थे जिसके


सारे लोग दीवाने,


घर- घर में शोभा थी जिससे,


सुनते खबरें - गाने.






4.


फिल्में, गीत, खबर और नाटक


रोज हमें दिखलाता,


सीसे का छोटा सा बक्सा,


बोलो क्या कहलाता ?




5.


अफसर, नेता सबको भाती,


चौपाई बिन जान,


उसको पाने की खातिर सब


अपने हैं अनजान.




6.


ऊँचा - ऊँचा जो उड़े,


ना बादल ना चील,


कभी डोर उसकी खिंचे,


कभी पेच में ढील.








7.


खड़ा- खड़ा जो सेवा करता,


सबका जीवन दाता,


बिन जिसके ना बादल आयें,


बोलो क्या कहलाता ?






8.


सब कुछ लगता गरम - गरम है,


गरम ना हमको भाए,


किस मौसम में मन करता है,


जी भर ठंडा खाएं.






9.


ठंडी - ठंडी दूध और जल से


जमी है चपटी - गोल,


सारे बच्चे मचल उठें सुन,


इसके मीठे बोल.






10.


चरणों में जो रहता हरदम,


सेवक सीधा सादा,


बदमाशों का करे खातमा,


दादों का भी दादा.




उत्तर : 1. सूरज, 2. पुस्तक, 3. रेडियो,

4. टी.वी., 5. कुर्सी,  6. पतंग, 7. पेड़,

8. गरमी, 9. कुल्फी, 10. जूता.

5 comments:

  1. बहुत मन भावन प्रस्तुति

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  2. bahut khoob! maine apke blog ka pata ek do parents ko de diya hai taki ve padh kar abchchon ko suna sake. Very useful for neo parents!

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  3. बड़ी-बड़ी प्यारी-प्यारी पहेली....मजा आ गया.

    _______________
    'पाखी की दुनिया' में " एक दिन INS राणा पर"

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  4. Baujee, Bahut achhe!
    Jab ho jayenge mere bacche...
    Umar aur akal mein thode kacche....
    Aaya karenge aapke blog par, banne samajhdaar aur sacche!

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