प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Thursday, May 27, 2010

बाल पहेलियाँ भाग 5 / दीनदयाल शर्मा

बाल पहेलियाँ भाग 5
  दीनदयाल शर्मा 

1.

टर्र - टर्र जो टर्राते हैं
जैसे गीत सुनाते,
जब ये जल में तैरा करते 
पग पतवार बनाते.


2.

चर - चर करती शोर मचाती
पेड़ों पर चढ़ जाती,
काली पत्तियां तीन पीठ पर
कुतर - कुतर फल खाती.



3.

छोटे तन में गांठ लगी है
करे जो दिनभर काम,
आपस में जो हिलमिल रहती 
नहीं करती आराम.



4.

पानी में खुश रहता हरदम
धीमी जिसकी चाल,
खतरा पाकर सिमट जाये झट
बन जाता खुद ढाल.


5.

छत से लटकी मिल जाती है
अठ पग वाली नार,
बुने लार से मलमल जैसे
कपड़े जालीदार.



उत्तर : 1. मेंढक 2. गिलहरी, 3.चींटी, 
4. कछुआ, 5. मकड़ी.

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