प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Saturday, May 29, 2010

दीनदयाल शर्मा की शिशु कविता-चूहा


चूहा 

चूहा आया, चूहा आया
चूं - चूं करता चूहा आया
पूंछ हिलाता चूहा आया
मूंछ हिलाता चूहा आया
देखो वह कितना फुर्तीला
कोई उसका पकड़ न पाया।

-दीनदयाल शर्मा

2 comments:

  1. बहुत खूब..देखिये हमने आपका चूहा पकड़ लिया..सुन्दर बाल गीत.

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  2. एक चिंता :
    चूहे के प्रति घरेलू हिंसा रुक जायेगी यदि आप यूँ चूहा-प्रेम व्यक्त करते रहे.
    कहीं अब आप मच्छरों के प्रति प्रेम भरे नगमे ना लिखने लगें. तब ऑलआउट, मच्छरमार फार्मूले सब धरे-के-धरे रह जायेंगे.

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