प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Monday, May 31, 2010

दीनदयाल शर्मा की बाल कविता - गर्मी

गर्मी / दीनदयाल शर्मा 
तपता सूरज लू चलती है ,
हम सबकी काया जलती है..

गर्मी आग का है तंदूर
इससे कैसे रहेंगे दूर
मन करता हम कुल्फी खाएं,
कूलर के आगे सो जाएँ.
खेलने को हम हैं मजबूर,
खेलेंगे हम सभी जरुर
पेड़ों की छाया में चलकर ,
झूला झूल के आयेंगे,
फिर चाहे कितनी हो गर्मी,
इस से ना घबराएंगे.

3 comments:

  1. अंकल जी, मजेदार कविता...पर यहाँ अंडमान में तो मौसम सुहाना है.

    _____________
    और हाँ, 'पाखी की दुनिया' में साइंस सिटी की सैर करने जरुर आइयेगा !

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  2. KHUSH KHABARI ! ! bhai saab , kuchh dino me SURAJ dhila hone wala hai .

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  3. अंकल जी, आज टाबर- टोली का अंक मिल गया..बहुत अच्छा लगा.
    ____________
    'पाखी की दुनिया' में रोटी का कमाल

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