गर्मी / दीनदयाल शर्मा
तपता सूरज लू चलती है ,
हम सबकी काया जलती है..
गर्मी आग का है तंदूर
इससे कैसे रहेंगे दूर
मन करता हम कुल्फी खाएं,
कूलर के आगे सो जाएँ.
खेलने को हम हैं मजबूर,
खेलेंगे हम सभी जरुर
पेड़ों की छाया में चलकर ,
झूला झूल के आयेंगे,
फिर चाहे कितनी हो गर्मी,
इस से ना घबराएंगे.
अंकल जी, मजेदार कविता...पर यहाँ अंडमान में तो मौसम सुहाना है.
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और हाँ, 'पाखी की दुनिया' में साइंस सिटी की सैर करने जरुर आइयेगा !
KHUSH KHABARI ! ! bhai saab , kuchh dino me SURAJ dhila hone wala hai .
ReplyDeleteअंकल जी, आज टाबर- टोली का अंक मिल गया..बहुत अच्छा लगा.
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'पाखी की दुनिया' में रोटी का कमाल