प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है
Thursday, June 3, 2010
दीनदयाल शर्मा की शिशु कविताएं - 1
मुर्गा
कुकडू कूँ
मुर्गे की बांग
आलस को
खूँटी पर टांग।
तोता
टिऊ-टिऊ
जब तोता बोला
पिंकी ने
पिंजरे को खोला।
मोर
पिकोक-पिकोक
बोला मोर
नहीं करेंगे
कभी भी शोर।
कबूतर
गुटर गूँ जब
करे कबूतर
प्रश्न हमारे
आपके उत्तर।
चिड़िया
चीं-चीं करके
चिड़िया चहकी
वातावरण में
ख़ुशबू महकी।
1 comment:
ब्लॉ.ललित शर्मा
June 3, 2010 at 7:21 AM
बेहतरीन बाल कविताएं
आभार
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बेहतरीन बाल कविताएं
ReplyDeleteआभार