प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Monday, June 7, 2010

दीनदयाल शर्मा की कविता - समय



समय

 गलत काम में गुस्सा आता,
धीरज क्यों नहीं धरता मैं।
उम्मीदें पालूं  दूजों से, 
खुद करने से डरता मैं।।

आलस बहुत बुरी चीज है,
 किसको कैसे बतलाऊं।
आलस की नदिया में बैठा, 
अपनी गागर भरता मैं।।

समय की कीमत कब समझूंगा,
समय निकल जाएगा तब।
समय सफलता कैसे देगा, 
कोशिशें ना करता मैं।।

सब कुछ जान लिया है मैंने, 
कुछ भी नहीं रहा बाकि।
मुझको कौन सिखा सकता है, 
अहंकार में मरता मैं।।

समय नहीं कुछ कहने का अब,
 खुद कर लूं  तो अच्छा है।
सीख शरीरां उपजे सारी, 
बाहर क्यों विचरता मैं।।



3 comments:

  1. इस बालकविता का जवाब नही!
    अद्वितीय!

    ReplyDelete
  2. समय नहीं कुछ कहने का अब,
    खुद कर लूं तो अच्छा है।
    सीख शरीरां उपजे सारी,
    बाहर क्यों विचरता मैं।।

    समय बड़ा बलवान है

    ReplyDelete
  3. अति सुंदर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete

हिन्दी में लिखिए