मधुमक्खी कितनी प्यारी तुम । मेहनत से न डरती हो तुम ।।
फूलों से रस चूस-चूस कर ।
कितना मीठा शहद बनाती ।।
भांति-भांति के फूलों पर तुम ।
सुबह-सवेरे ही मंडराती ।।
वैद्य और विद्वान तुम्हारे ।
मधु के गुण गाते हैं सारे ।।
ख़ुद न चखती खाती हो तुम ।
मधुमक्खी मुझे भाती हो तुम ।।
ओ चिड़िया
ओ चिड़िया तुम कितनी प्यारी ।
साधारण-सी शक्ल तुम्हारी ।।
चीं-चीं कर आँगन में आती ।
सब बच्चों के मन को भाती ।।
भोली और लगती मासूम ।
जी करता तुमको लूँ चूम ।।
भाँति-भाँति के न्यारे-न्यारे ।
जीव-जंतु जहाँ रहते सारे ।।
तेरा घर हम सबको भाए ।
तभी तो चिडिय़ाघर कहलाए ।।
मनोरम हैं आपकी सभी बाल कविताएँ...धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है कविताये !
ReplyDelete___________
New Post : fathers day card and cow boy
बहुत ही अच्छी बाल कविताएँ ।
ReplyDeleteअंकल जी, मजेदार रही कविता. यदि हर पोस्ट में बाल-गीत से सम्बंधित चित्र लगायेंगे तो और भी मजेदार रहेगा.
ReplyDelete१]
ReplyDeleteमधुमक्खी ने आदमी के नाम लिखा चिट्ठा :
ओ आदमी!
आप करते हो हमारी प्रशंसा
वैद्य, विद्वान् आदि हामारे गुण गाते नहीं थकते
लेकिन हमारे समझ नहीं आता ये 'अवार्ड फंक्शन'
हमारी महीनों की मेहनत कोई ले जाता है
और आप गाते हो हमारे त्याग की महिमा.
हमें बेघर होना पड़ता है,
पुनर्जन्म लेने को बाध्य होना पड़ता है.
मौत से पहले हमें झेलना होता है धुँआ,
कभी-कभी भाइयों से बिछड़ना.
अपने बच्चों की खुराक कोई छीन ले
उसका दुःख हम से ज़्यादा कौन जानता होगा.
.......... फिर भी आपने मानव पक्ष से एक बेहतरीन कविता लिखी है.
[२]
चिड़िया
सीधी-सादी घरेलु चिड़िया
घर में रहना जिसे अच्छा लगता है.
ऐसा लगता है हमें सदा से.
घुल-मिल कर रहना
बिखरे दानों को चुगकर बरबाद होने से बचाना.
जिसके चहकने से सुबह और शाम
स-स्वर हो जाती है, जीवंत हो जाती है.
................ आपकी कविता ने मेरे विचारों को गति देने का कार्य किया. धन्यवाद.
बहुत ही प्यारी
ReplyDeleteयूं कहे न्यारी कविताएं लिखी है आपने
आपको बधाई
आपकी पोस्ट आज चर्चा मंच पर भी है...
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/2010/07/217_17.html
तेरा घर हम सबको भाए ।
ReplyDeleteतभी तो चिडिय़ाघर कहलाए ।।
waaaaaaaaaaaaaah khubsurat
बहुत ही सुन्दर बालगीत, बधाई ।
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