सपने और विश्वास
सपने तो लेते हैं हम सब,
ऊंची रखते आस,
ऊंची रखते आस,
मिले सफलता उसको,
जिसके मन में हो विश्वास।
जिसके मन में हो विश्वास।
बेमतलब की बात करें हम,
अधकचरा है ज्ञान,
अधकचरा है ज्ञान,
अपनी कमजोरी पर आख़िर ,
क्यों नहीं देते ध्यान।
क्यों नहीं देते ध्यान।
दोषी खुद हैं मंढें और पर,
किसको आए रास।।
किसको आए रास।।
आगे बढ़ता देख न पाएं,
भीतर उठती आग,
भीतर उठती आग,
कहें चोर को चोरी कर तू,
मालिक को कहें जाग।
मालिक को कहें जाग।
कैसे हो कल्याण हमारा,
चाहें और का नाश।।
चाहें और का नाश।।
अच्छा कभी न सोचेंगे हम,
भाए न अच्छी बात
भाए न अच्छी बात
ऊंची-ऊंची फेंकने वालों,
के हम रहते साथ।
के हम रहते साथ।
लाखों की चाहत है अपनी,
पाई नहीं है पास।।
पाई नहीं है पास।।
आलस है हम सबका दुश्मन,
इसको ना छोड़ेंगे
इसको ना छोड़ेंगे
सरल मार्ग अपनाएं सारे,
खुद को ना मोड़ेंगे।
खुद को ना मोड़ेंगे।
अंधकूप में भटकेंगे तो,
कैसे मिले उजास।।
कैसे मिले उजास।।
समय नहीं कुछ कहने का
गलत काम में गुस्सा आता,
धीरज क्यों नहीं धरता मैं।
धीरज क्यों नहीं धरता मैं।
उम्मीदें पालूं दूजों से,
खुद करने से डरता मैं।।
खुद करने से डरता मैं।।
आलस बहुत बुरी चीज है,
किसको कैसे बतलाऊं।
किसको कैसे बतलाऊं।
आलस की नदिया में बैठा,
अपनी गागर भरता मैं।।
अपनी गागर भरता मैं।।
समय की कीमत कब समझूंगा ,
समय निकल जाएगा तब।
समय निकल जाएगा तब।
समय सफलता कैसे देगा,
कोशिशें ना करता मैं।।
कोशिशें ना करता मैं।।
सब कुछ जान लिया है मैंने,
कुछ भी नहीं रहा बाकि।
कुछ भी नहीं रहा बाकि।
मुझको कौन सिखा सकता है,
अहंकार में मरता मैं।।
अहंकार में मरता मैं।।
समय नहीं कुछ कहने का अब,
खुद करलूं तो अच्छा है।
खुद करलूं तो अच्छा है।
सीख शरीर से उपजे सारी,
बाहर क्यों विचरता मैं।।
बाहर क्यों विचरता मैं।।
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