प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Wednesday, July 21, 2010

दीनदयाल शर्मा की बाल कविता "उल्टा-पुल्टा "

उल्टा-पुल्टा
हो गया उल्टा-पुल्टा इक दिन
उड़ गया हाथी पंखों के बिन।
धरती से पाताल की ओर
बीच चौराहे घनी भीड़ में
भरी दुपहरी नाचा मोर।

बकरी ने दो दिए थे अंडे
बैठे थे शमशान में पंडे।
गूँगी औरत करती शोर
चूहों की दहाड़ सुनी तो
सिर के बल पर भागे चोर।

मुर्गा बोला म्याऊँ-म्याऊँ
बिल्ली बोली कुकड़ू कूँ।
बिना पतंग के उड़ गई डोर
निकले तारे धरती पर तो 
छिप गया सूरज हो गई भोर।।



3 comments:

  1. बिना पतंग के उड़ गई डोर
    निकले तारे धरती पर तो
    छिप गया सूरज हो गई भोर।।

    ...majedar raha ye to.

    ReplyDelete
  2. कल्पना की खूबसूरत उड़ान, नतीजा- एक बेहतरीन बाल कविता !

    ReplyDelete

हिन्दी में लिखिए