उल्टा-पुल्टा
हो गया उल्टा-पुल्टा इक दिन
उड़ गया हाथी पंखों के बिन।
धरती से पाताल की ओर
बीच चौराहे घनी भीड़ में
भरी दुपहरी नाचा मोर।
बकरी ने दो दिए थे अंडे
बैठे थे शमशान में पंडे।
गूँगी औरत करती शोर
चूहों की दहाड़ सुनी तो
सिर के बल पर भागे चोर।
मुर्गा बोला म्याऊँ-म्याऊँ
बिल्ली बोली कुकड़ू कूँ।
बिना पतंग के उड़ गई डोर
निकले तारे धरती पर तो
छिप गया सूरज हो गई भोर।।
हा हा
ReplyDeleteबिना पतंग के उड़ गई डोर
ReplyDeleteनिकले तारे धरती पर तो
छिप गया सूरज हो गई भोर।।
...majedar raha ye to.
कल्पना की खूबसूरत उड़ान, नतीजा- एक बेहतरीन बाल कविता !
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