प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Thursday, July 22, 2010

दीनदयाल शर्मा की बाल कविता "चूँ-चूँ चूहा"

चूँ-चूँ चूहा

चूँ-चूँ चूहा बोला- मम्मी,
मैं भी पतंग उड़ाऊँगा ।
लोहे-सी मज़बूत डोर से,
मैं भी पेच लड़ाऊँगा ।

मम्मी बोली- तुम बच्चे हो,
बात पेच की करते हो ।
बाहर बिल्ली घूम रही है,
क्या उससे नहीं डरते हो ?

चूँ-चूँ बोला- बिल्ली क्या है,
उसे करूँगा 'फेस'।
मैंने पहन रखी है मम्मी
काँटों वाली ड्रेस ।



4 comments:

  1. चूँ-चूँ बोला- बिल्ली क्या है,
    उसे करूँगा 'फेस'।
    मैंने पहन रखी है मम्मी
    काँटों वाली ड्रेस ।....ये तो खूब मजेदार रही...आपकी फोटो भी मस्त लग रही है अंकल जी.

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  2. बेहद अच्छी रचना. पढ़कर मन गदगद हो गया.

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