प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Wednesday, July 28, 2010

दीनदयाल शर्मा की बाल कविता "मोबाइल "




मोबाइल 


माँ, मैं भी मोबाइल लूँगा,
अच्छी-अच्छी बात करूँगा।

हर मौके पर काम यह आता,
संकट में साथी बन जाता।
होम-वर्क पर ध्यान मैं दूँगा,
पढऩे में पीछे न रहूँगा।

मेरी ख़बर चाहे कभी भी लेना,
एस० एम० एस० झट से कर देना।
स्कूल समय में रखूँगा बंद,
सदा रहूँगा मैं पाबंद।

कहाँ मैं आता कहाँ मैं जाता,
चिंता से तुझे मुक्ति दिलाता।
माँ धर तू मेरी बात पे ध्यान,
अब मोबाइल समय की शान।









3 comments:

  1. अब तो मैं भी मोबाईल लूंगी ....सुन्दर गीत.

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  2. बहुत अच्छी कविता....
    मोबाईल जितनी ही अच्छी....
    अब तो कागज के नोट जैसा मोबाईल भी मार्किट में आ रहा है, जिसे हम मोड़ कर जेब में डाल सकते हैं। सुर्य शक्ति से चलने वाले मोबाईल भी आ रहे हैं....आप को कौन सा अच्छा लगता है।

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  3. dr.sahiba...deendyal ji to latest technology wala mobile hi lenge..
    deendyal ji...namaskar..bahut achha likha h aapne..badhai.

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