प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Thursday, August 5, 2010

दीनदयाल शर्मा की पांच शिशु कवितायेँ

मुर्गा

कुकडू कूँ 
मुर्गे की बांग
आलस को 
खूँटी पर टांग।




तोता


टिऊ-टिऊ 
जब तोता बोला
पिंकी ने 
पिंजरे को खोला।




मोर


पिकोक-पिकोक 
बोला मोर
नहीं करेंगे 
कभी भी शोर।




कबूतर


गुटर गूँ जब 
करे कबूतर
प्रश्न हमारे 
आपके उत्तर।




चिड़िया


चीं-चीं करके
चिड़िया चहकी
वातावरण में 
ख़ुशबू महकी।


4 comments:

  1. वाह!! बहुत सुन्दर प्रस्तुति।बधाई।

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  2. SIR KRIPYA APNI SANGRAH E BOOK K MADHYAM SE BHEJE

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  3. पहले चूं-चूं में, अब यहाँ...पसंद आई. 'शब्द-सृजन की ओर' भी आयें...

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  4. प्यारी-प्यारी कवितायेँ...अच्छी लगीं.
    ____________
    'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.

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