मन चंचल काबू से बाहर
मन को कैसे पकडूं मैं ,
मन पल में भग जाये कहीं पर
मन को कैसे जकडूँ मैं ,
मन मारूं ना मन की मानूं
मन को मैंने समझ लिया,
मन से प्रीत लगाली मैंने
मीत बना कर जकड़ लिया,
मन को जीता जग को जीता
मन खुशियों से लहराया,
जग जाहिर करता मैं खुशियाँ
घर पे तिरंगा फहराया...
दीनदयाल शर्मा , हनुमानगढ़ जं.
मोबाइल : 09414514666

सरल और सरस कविता के लिए बधाई । 'मन को जीता जग को जीता'पंक्ति अपने आप में परिपूर्ण है ।
ReplyDeleteman chanchal man ko kaise pakdu main...bahut achchi kavita likhi hai aapne deendayal ji.
ReplyDeleteaapko swatantrata divas per badhai.
बेहतरीन बाल-गीत...बधाई.
ReplyDelete____________________
आप सबका 'बाल-दुनिया' में स्वागत है.
कित्ता प्यारा गीत...अच्छा लगा.
ReplyDeleteਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਲੱਗਾ ਬਾਲ ਗੀਤ ਪੜ੍ਹ ਕੇ
ReplyDeleteਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤਿਆ
ਜਗ ਨੂੰ ਜਿੱਤਿਆ
ਮਨ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਦੀ ਗੰਗਾ
ਘਰ 'ਚ ਲਹਿਰਾਇਆ ਤਿਰੰਗਾ