प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Sunday, August 15, 2010

मन / दीनदयाल शर्मा



मन खुशियों से लहराया 


मन चंचल काबू से बाहर 
मन को कैसे पकडूं मैं ,
मन पल में भग जाये  कहीं पर 
मन को कैसे जकडूँ मैं ,

मन मारूं ना मन की मानूं   
मन को मैंने समझ लिया,
मन से प्रीत लगाली मैंने 
मीत बना कर जकड़ लिया,

मन को जीता जग को जीता
मन खुशियों से लहराया, 
जग जाहिर करता मैं खुशियाँ 
घर पे तिरंगा फहराया...

दीनदयाल शर्मा , हनुमानगढ़ जं. 
मोबाइल : 09414514666 

5 comments:

  1. सरल और सरस कविता के लिए बधाई । 'मन को जीता जग को जीता'पंक्ति अपने आप में परिपूर्ण है ।

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  2. man chanchal man ko kaise pakdu main...bahut achchi kavita likhi hai aapne deendayal ji.
    aapko swatantrata divas per badhai.

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  3. बेहतरीन बाल-गीत...बधाई.
    ____________________

    आप सबका 'बाल-दुनिया' में स्वागत है.

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  4. कित्ता प्यारा गीत...अच्छा लगा.

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  5. ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਲੱਗਾ ਬਾਲ ਗੀਤ ਪੜ੍ਹ ਕੇ
    ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤਿਆ
    ਜਗ ਨੂੰ ਜਿੱਤਿਆ
    ਮਨ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਦੀ ਗੰਗਾ
    ਘਰ 'ਚ ਲਹਿਰਾਇਆ ਤਿਰੰਗਾ

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