प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Sunday, August 22, 2010

दीनदयाल शर्मा की कविता

ओ चिड़िया 
ओ चिड़िया तुम कितनी प्यारी ।
साधारण-सी शक्ल तुम्हारी ।।

चीं-चीं कर आँगन में आतीं ।
सब बच्चों के मन को भातीं ।।

भोली और लगतीं मासूम ।
जी करता तुमको लूँ चूम ।।

भाँति-भाँति के न्यारे-न्यारे ।
जीव-जंतु जहाँ रहते हैं सारे ।।

आपका घर हम सबको भाए 
तभी तो चिड़िया घर कहलाए 

9 comments:

  1. चीं-चीं कर आँगन में आतीं ।
    सब बच्चों के मन को भातीं ......
    सच में चिड़िया बच्चों को बहुत अच्छी लगती है...
    अगर आटे की चिड़िया से मिलने का मन हो तो शब्दों के उजाला आईएगा....पता तो मालूम ही होगा....
    http://shabdonkaujala.blogspot.com

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  2. भाई-बहिन के पावन पर्व रक्षा बन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    --
    आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है!
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/255.html

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  3. रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
    बहुत सुन्दर और प्यारी कविता है!

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  4. rakshabandhan ki shubhkamnaen..
    kavita bahut pyari h...

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  5. बहुत सुन्दर..पसंद आई ..बधाई.
    ______________________
    "पाखी की दुनिया' में 'मैंने भी नारियल का फल पेड़ से तोडा ...'

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  6. mn ko lubhaati,,, dulaartee,,
    sundar boloN se sajee
    mn-mohak kavitaa .
    w a a h !!

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