पांच बरस की बेटी
मानसी
न जाने क्यों नाराज़ है
घर के एक कोने में
खड़ी
मुझे देखते ही
फूट पड़ी
पापा,
अपनी पत्नी को समझा लो,
मुझे मारती रहती है
घर घर खेलती हूँ
तो कहती है पढ़
चित्र बनाती हूँ
तो कहती है पढ़
किसी से बात करती हूँ
तो कहती है पढ़
कहानी सुनाने को
कहती हूँ
तो कहती है पढ़
सारा दिन पढ़ पढ़ ही
क्यों कहती है मम्मी
मुझसे बात क्यों नहीं करती है
मम्मी
मेरी इससे कुट्टी है
मैं नहीं कहती इसको मम्मी
समझालो अपनी पत्नी को
में नहीं हूँ
इनकी बेटी...
विशेष : 11 मार्च 2005 को सांय : 4 :35 पर " राज्य संदर्भ केंद्र, जयपुर " में फ़ुरसत के क्षणों में सृजित कविता 'शिकायत '
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Kaafii bhaavpoorn. ansuaa diya aapne.
ReplyDeletebahut sundar.
ReplyDeleteदीनदियाल जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है...
चलो आगे इसे यूँ पूरा किए देते हैं
मम्मी को ....
अब बात समझ मे
आ गई है रे मुन्नी
पढ़ -पढ़ तो वो बोलेगी ही...
लेकिन बात सुनेगी मम्मी
कहानी भी सुनाएगी...
दादी माँ की...
वो परियों वालौ...
खेलेगी भी
तुझसे मेरी रानी।
BAHUT HEE SUNADAR AUR MARMIK KVITA LIKHI HAI AAPNE..DIL KO CHHOO GAYI..
ReplyDeletebachchon ki pyaari pyaari shikayat ko bahut khoobsurti se shabdon me piroya hai aapne.nice creation.
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