प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Sunday, October 31, 2010

दीपों का त्यौहार / दीनदयाल शर्मा

दीपों का त्यौहार
दीपों का त्यौहार दिवाली
आओ दीप जलाएँ,
भीतर के अंधियारे को हम
मिलकर दूर भगाएँ।


छत्त पर लटक रहे हों जाले
इनको दूर हटाएँ,
रंग-रोगन से सारे घर को
सुन्दर सा चमकाएँ।



अनार, पटाखे, बम-फुलझडी,
चकरी खूब चलाएँ,
हलवा-पूड़ी, भजिया-मठी
कूद-कूद कर खाएँ।



सुन्दर-सुन्दर पहन के कपड़े
घर-घर मिलने जाएँ,
इक दूजे में खुशियाँ बाँटे,
अपने सब बन जाएँ।

-दीनदयाल शर्मा


4 comments:

  1. सुंदर कविता... फोटो भी अच्छा लगा....

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  2. दीवाली में बच्चों के मज़े है.
    आसान शब्दों में अच्छी कविता

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  3. diwali per likhi bahut sunder kavita.bahut bahut badhaai.

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