प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Saturday, November 20, 2010

सर्दी / दीनदयाल शर्मा

सर्दी / दीनदयाल शर्मा

सर्दी आई सर्दी आई
ओढ़ें कम्बल और रजाई
ज्यों-ज्यों सर्दी बढ़ती जाए
कपड़ों की हम करें लदाई।

मिलजुल सारे आग तापते
रात-रात भर करें हथाई।
भाँति-भाँति के लड्डू खाकर
सर्दी पर हम करें चढ़ाई।

सूरज निकला धूप सुहाई
सर्दी की अब शामत आई।
फाल्गुन आया होली आई
सर्दी की हम करें विदाई।।


2 comments:

  1. बहुत सुंदर सर्दी का वर्णन.... काफी पुरानी फोटो लगाई है....बडी प्यारी और सर्दी की कविता को सूट करती हुई....

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  2. अरे वाह सर्दी की कविता ... बहुत अच्छी लगी क्योंकि मेरे यहाँ तो बर्फ गिर रही है.....

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