सर्दी / दीनदयाल शर्मा
सर्दी आई सर्दी आई
ओढ़ें कम्बल और रजाई
ज्यों-ज्यों सर्दी बढ़ती जाए
कपड़ों की हम करें लदाई।
मिलजुल सारे आग तापते
रात-रात भर करें हथाई।
भाँति-भाँति के लड्डू खाकर
सर्दी पर हम करें चढ़ाई।
सूरज निकला धूप सुहाई
सर्दी की अब शामत आई।
फाल्गुन आया होली आई
सर्दी की हम करें विदाई।।
बहुत सुंदर सर्दी का वर्णन.... काफी पुरानी फोटो लगाई है....बडी प्यारी और सर्दी की कविता को सूट करती हुई....
ReplyDeleteअरे वाह सर्दी की कविता ... बहुत अच्छी लगी क्योंकि मेरे यहाँ तो बर्फ गिर रही है.....
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