प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Friday, November 28, 2014

सरदी आई / दीनदयाल शर्मा



सरदी आई / दीनदयाल शर्मा

सरदी आई ठंडक लाई
ओढें कंबल और रजाई 


कोट स्वेटर टोपी मफ़लर
इन सबकी करते भरपाई..


ठंडी चीजें नहीं सुहाती
गरम गरम सबके मन भायी..


नहाने से डरते हम बच्चे
लगता जैसे आफ़त आई..


पंखे कूलर बंद कर दिये
अब हीटर की बारी आई..

गांवों में सब आग तापते
बैठे बैठे करें हथाई..


गज्जक मुंगफली लड्डू खा कर
चाय की प्याली खनकाई..

सूरज निकला धूप सुहाई
गली- गली में रौनक छाई...



4 comments:

  1. लाजवाब रचना...

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (30-11-2014) को "भोर चहकी..." (चर्चा-1813) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete

  3. सरदी आई सरदी आई
    पंखा बंद कर मेरे भाई
    अब हीटर की बारी आई..
    ..बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  4. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete

हिन्दी में लिखिए