प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Friday, December 5, 2014

बंदर जी / दीनदयाल शर्मा

हिन्दी बाल कविता-

बंदर जी / दीनदयाल शर्मा

बंदर जी तुम आओ जी,
क्यों इतने घबराओ जी।
तुम्हें देख बच्चे खुश होते,
इनको और हँसाओ जी।
बच्चे यदि तुम्हें छेड़े तो,
इनको खूब डराओ जी।
खाने की कोई चीज तुम्हें देें,
झटपझट से तुम खाओ जी।
चपर-चपर तुम अदरक खाकर,
इसका स्वाद बताओ जी।
धोती-कुर्ता पहन के टोपी,
इतने मत इतराओ जी।
नकल में हो तुम सबसे आगे,
कुछ करके दिखलाओ जी।
सरकस में हो या तुम घर में,
सब के मन को भाओ जी।।

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (07-12-2014) को "6 दिसंबर का महत्व..भूल जाना अच्छा है" (चर्चा-1820) पर भी होगी।
    --
    सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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