Monday, August 30, 2010
Friday, August 27, 2010
दीनदयाल शर्मा की एक ख़ास बाल कविता - शिकायत
शिकायत / दीनदयाल शर्मा
पांच बरस की बेटी
मानसी
न जाने क्यों नाराज़ है
घर के एक कोने में
खड़ी
मुझे देखते ही
फूट पड़ी
पापा,
अपनी पत्नी को समझा लो,
मुझे मारती रहती है
घर घर खेलती हूँ
तो कहती है पढ़
चित्र बनाती हूँ
तो कहती है पढ़
किसी से बात करती हूँ
तो कहती है पढ़
कहानी सुनाने को
कहती हूँ
तो कहती है पढ़
सारा दिन पढ़ पढ़ ही
क्यों कहती है मम्मी
मुझसे बात क्यों नहीं करती है
मम्मी
मेरी इससे कुट्टी है
मैं नहीं कहती इसको मम्मी
समझालो अपनी पत्नी को
में नहीं हूँ
इनकी बेटी...
विशेष : 11 मार्च 2005 को सांय : 4 :35 पर " राज्य संदर्भ केंद्र, जयपुर " में फ़ुरसत के क्षणों में सृजित कविता 'शिकायत '
Sunday, August 22, 2010
Sunday, August 15, 2010
मन / दीनदयाल शर्मा
मन चंचल काबू से बाहर
मन को कैसे पकडूं मैं ,
मन पल में भग जाये कहीं पर
मन को कैसे जकडूँ मैं ,
मन मारूं ना मन की मानूं
मन को मैंने समझ लिया,
मन से प्रीत लगाली मैंने
मीत बना कर जकड़ लिया,
मन को जीता जग को जीता
मन खुशियों से लहराया,
जग जाहिर करता मैं खुशियाँ
घर पे तिरंगा फहराया...
दीनदयाल शर्मा , हनुमानगढ़ जं.
मोबाइल : 09414514666
Saturday, August 14, 2010
Tuesday, August 10, 2010
Thursday, August 5, 2010
Monday, August 2, 2010
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