गर्मी / दीनदयाल शर्मा
तपता सूरज लू चलती है ,
हम सबकी काया जलती है..
गर्मी आग का है तंदूर
इससे कैसे रहेंगे दूर
मन करता हम कुल्फी खाएं,
कूलर के आगे सो जाएँ.
खेलने को हम हैं मजबूर,
खेलेंगे हम सभी जरुर
पेड़ों की छाया में चलकर ,
झूला झूल के आयेंगे,
फिर चाहे कितनी हो गर्मी,
इस से ना घबराएंगे.